COP29 अध्ययन में खुलासा G-20 देशों को जलवायु कार्रवाई में तेज़ी लानी होगी।

COP29 study reveals G-20 countries must accelerate climate action | Roglance News

नई दिल्ली: विश्व भर में जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक संकट बन चुका है, और इसके प्रभावों को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायनरमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) द्वारा जारी एक अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न देशों के प्रयासों का मूल्यांकन किया गया है। यह अध्ययन संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट समिट (COP29) के दौरान प्रस्तुत किया गया। अध्ययन में यह बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की दिशा में कई देशों ने उल्लेखनीय कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ जी-20 देशों को अपनी जलवायु नीतियों में तेजी लाने की आवश्यकता है।

✜  जी-20 देशों की जलवायु नीति और कार्रवाई

जी-20 देशों का योगदान वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इन देशों का वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण स्थान है, और उनका जलवायु परिवर्तन पर असर सीधे तौर पर पूरे ग्रह पर पड़ता है। अध्ययन के अनुसार, इनमें से कुछ देशों ने जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं, जबकि कुछ देशों को अभी भी अपनी जलवायु नीतियों में सुधार की आवश्यकता है।

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अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में उन देशों के रूप में सामने आए हैं जिन्हें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने में तेजी लाने की आवश्यकता है। इन देशों ने हालांकि जलवायु अनुकूलन के प्रयास किए हैं, लेकिन ये प्रमुख जलवायु समझौतों से अनियमित जुड़ाव और कमजोर महत्वाकांक्षाओं के कारण आलोचना का शिकार हैं।

अमेरिका, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, को अपनी जलवायु नीतियों को मजबूत और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भी नीतियों की स्थिरता और प्रभावशीलता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इन देशों ने जलवायु परिवर्तन पर ध्यान तो दिया है, लेकिन उनके प्रयासों की गति धीमी रही है, जो वैश्विक स्तर पर चिंताजनक है।

✜  यूरोप और एशिया में जलवायु परिवर्तन प्रयास

इसके विपरीत, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान और जर्मनी जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय जलवायु सहयोग और व्यापक जलवायु गवर्नेंस फ्रेमवर्क स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन देशों ने न केवल अपनी घरेलू नीतियों में सुधार किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जलवायु समझौतों में सक्रिय भूमिका निभाई है। इन देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं को सख्ती से अपनाया है और वैश्विक उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों में भाग लिया है।

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यूरोपीय देशों में जलवायु परिवर्तन पर व्यापक ध्यान दिया गया है। यूरोपीय संघ ने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए अपनी महत्वाकांक्षी नीतियों को लागू किया है, और ब्रिटेन ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 68% की कमी करने का लक्ष्य रखा है। इसके साथ ही, जर्मनी ने 2050 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लिए अपनी योजनाओं की घोषणा की है। जापान ने भी अपने कार्बन उत्सर्जन में 46% तक की कमी का लक्ष्य रखा है और 2050 तक नेट ज़ीरो की दिशा में काम कर रहा है।