उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती का मामला पिछले कुछ वर्षों से विवादों में घिरा हुआ है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 69,000 शिक्षकों की भर्ती की नई सूची बनाने का निर्देश दिया गया था। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए दिया है, ताकि मामले के कानूनी और संवैधानिक पहलुओं का गहन अध्ययन किया जा सके।
✲ शिक्षक भर्ती पर हाई कोर्ट का आदेश
2014 में, उत्तर प्रदेश की तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने 1.37 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित किया था। लेकिन, 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस समायोजन को रद्द कर दिया और राज्य सरकार को 1.37 लाख पदों पर नए सिरे से भर्ती करने का निर्देश दिया। इसके बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दो चरणों में शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया आरंभ की। पहले चरण में 2018 में 68,500 शिक्षकों की भर्ती की गई, और दूसरे चरण में 2019 में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती का ऐलान किया गया।
इस भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नियमों के पालन को लेकर कई विवाद उठे। कई अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और आरोप लगाया कि भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया गया है। इसके बाद, इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने 16 अगस्त 2023 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती की जून 2020 और जनवरी 2022 की मेरिट सूची को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि इस भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों का ठीक से पालन नहीं हुआ था और इसके आधार पर राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर एक नई चयन सूची जारी करने का आदेश दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 52 अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि हाईकोर्ट का फैसला असंवैधानिक और अव्यावहारिक है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले वह हाईकोर्ट के फैसले का विस्तृत अध्ययन करेगी और कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए अगला कदम उठाएगी।
✲ मुद्दे पर अखिलेश यादव की राय
इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार शिक्षक भर्ती मामले में "दोहरा खेल" खेल रही है। अखिलेश का मानना है कि सरकार जानबूझकर इस मामले को न्यायिक प्रक्रिया में उलझा रही है और भर्ती प्रक्रिया को लटकाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे अभ्यर्थियों को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से ठेस पहुंच रही है। उन्होंने सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की कि भर्ती प्रक्रिया को शीघ्रता से पूरा किया जाए ताकि अभ्यर्थियों का भविष्य अंधकार में न रहे।
आरक्षण का विवाद इस भर्ती प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि सरकार ने सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित सीटों का ठीक से आवंटन नहीं किया। कोर्ट ने भी माना कि आरक्षण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी थी। सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में हस्तक्षेप के बाद, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आरक्षण के मुद्दे को कैसे हल किया जाएगा और इसके आधार पर नई मेरिट सूची कैसे तैयार की जाएगी।
निष्कर्ष: उत्तर प्रदेश में 69,000 शिक्षकों की भर्ती का मामला न केवल एक कानूनी चुनौती है, बल्कि यह प्रशासनिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता की भी परीक्षा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले के भविष्य को निर्धारित करेगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इस मुद्दे ने एक बार फिर दिखाया है कि सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता और नियमों के सही पालन की कितनी जरूरत है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला क्या होता है और इसका शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है।