✲ सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायालय के फैसले पर निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि इन 14 उत्पादों के सभी विज्ञापन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से हटा लिए जाएं। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पतंजलि को दो हफ्ते के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें यह विवरण हो कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से विज्ञापन हटाने के लिए किए गए अनुरोध पर अमल किया गया है या नहीं।
उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने पतंजलि के 14 उत्पादों के निर्माण लाइसेंस को निलंबित करते हुए कहा कि ये उत्पाद नियमों और मानकों का पालन नहीं कर रहे थे। इस निर्णय ने पतंजलि को अपने 5,606 फ्रेंचाइजी स्टोर को इन उत्पादों को वापस लेने का निर्देश देने के लिए मजबूर किया। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भी इन उत्पादों के सभी विज्ञापन वापस लेने के निर्देश दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों के मामले में पतंजलि के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि कंपनी को अपने सभी भ्रामक और गलत विज्ञापनों को तुरंत हटाना होगा। यह निर्णय उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा और बाजार में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लिया गया।
✲ पश्चिम बंगाल सरकार का निर्णय
यह मामला भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) द्वारा दायर याचिका का परिणाम था, जिसमें पतंजलि पर कोविड टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के खिलाफ दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया गया था। आईएमए ने पतंजलि के इन दावों को गलत और भ्रामक बताया, जिससे जनता के बीच भ्रम और अविश्वास पैदा हो सकता है। इस याचिका के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव, उनके सहयोगी बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को अवमानना नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के उस फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें एक निजी कंपनी को कोलकाता में दो अंडरपास के रखरखाव के संबंध में मिला ठेका बिना कोई कारण बताए रद्द कर दिया गया था। न्यायालय ने इसे मनमानी का अनूठा मामला करार दिया और कहा कि अनुबंध रद्द करने का निर्णय एक मंत्री के आदेश पर लिया गया था। इस मामले में न्यायालय ने निजी पक्षों को काम देने वाले ठेकों को बिना कारण बताए रद्द नहीं किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
पतंजलि के 14 उत्पादों की बिक्री बंद करने का मामला एक महत्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक मुद्दा है। यह मामला उपभोक्ता अधिकारों, उत्पाद सुरक्षा और नियामक अनुपालन के महत्व को रेखांकित करता है। इसके अलावा, यह मामला सरकार और नियामक संस्थाओं के बीच तालमेल की कमी को भी उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने आयुर्वेदिक उद्योग और उपभोक्ताओं को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा सर्वोपरि है। यह मामला यह भी दर्शाता है कि उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा और बाजार में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नियामक मानकों का पालन करना आवश्यक है।
आगे बढ़ते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि पतंजलि और अन्य आयुर्वेदिक उत्पाद निर्माता अपने उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दें और सभी नियामक मानकों का पालन करें। इससे न केवल उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा बल्कि उद्योग की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।